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ऐप घर के बाहर लॉन से गमले गायब थे। मीनू दौड़कर आसपास ढूंढ़ आई, लेकिन उसे कहीं कोई सुराग नहीं मिला। माथे पर सिकुड़न लिए हुए रोंआसी वह घर लौट आई। “क्या हुआ?” पापा ने उसका लटका हुआ चेहरा देखकर पूछा। मीनू कुछ न बोली, बस फफककर रो पड़ी। रोने की आवाज सुनकर दादाजी भी आंगन से कमरे की ओर दौड़ पड़े। उनके पूछने पर मीनू ने बताया, “मेरे सातों गमले लॉन से चोरी हो गए। जाने कौन ले गया उन्हें?” यह सुनकर सबको बड़ा ताज्जुब हुआ। “भला गमले चोरी करके किसी को क्या मिला होगा?” पापा सोच में पड़ गए। “किसी घटिया चोर का काम लगता है।” दादाजी बड़बड़ाए। उधर मीनू अपने प्यारे गमलों को याद करके लगातार रोए जा रही थी। पापा ने उसके सातवें जन्मदिन पर उपहार में सात छोटे गमले लाकर दिए थे। उनमें तरह-तरह के फूलों के पौधे लगे थे। उस दिन उसकी खुशी का ठिकाना न था। उसे ऐसा अनोखा उपहार आज तक न मिला था। कोई उसके गमलों को चुरा ले जाएगा, उसने सोचा भी न था। “गमले फिर आ जाएंगे बिटिया, तुम चिंता न करो।” उसे परेशान देखकर दादा बोले। “मैं आज ही नए गमले ला दूंगा।” पापा ने भरोसा दिलाया, लेकिन मीनू फिर भी सुबकती रही। उसे रह-रहकर गमलों की याद आ रही थी। मम्मी घर पर नहीं थीं। वह मीनू के छोटे भाई गोपू को स्कूल छोड़ने गई थीं और अभी तक आई नहीं थीं। मीनू को डर था कि मम्मी उस पर बहुत गुस्सा होंगी। उन्होंने मीनू को गमले बाहर न रखने का सुझाव दिया था। वह चाहती थीं कि गमले आंगन में रखे जाएं ताकि खुले घूम रहे जानवरों से बचे रहें, लेकिन मीनू नहीं मानी थी। “आंगन में पूरी तरह धूप भी तो नहीं आती है।” मीनू ने यह कहते हुए आंगन में गमले रखने से मना कर दिया था। ‘मैं मम्मी की बात मान जाती, तो मेरे गमले चोरी न होते।’ सोचकर मीनू पहले से ज्यादा उदास हो गई। “जो चीज चली गई, उसके लिए अब क्या रोना बेटी? शाम तक तुम्हारे नए गमले आ जाएंगे।” दादाजी ने उसे अपने पास बुलाकर गोद में बिठा लिया। थोड़ी देर में ही मम्मी वापस आ गईं। मीनू डर के मारे दादाजी की गोद में दुबक गई। एक जगह सभी को इकट्ठा और उदास देखकर मम्मी को शक हुआ, तो उन्होंने पूछा,“आप सबको क्या हुआ?” दादाजी ने सारी बातें उन्हें बताईं। एक पल के लिए मम्मी शांत हो गईं। उन्हें सारा माजरा समझते देर न लगी,लेकिन अगले ही पल उनकी हंसी छूट पड़ी। “मीनू कब से रोए जा रही है, और तुम हंस रही हो? तुम्हें पता है, मीनू को गमले कितने प्यारे थे।” उनकी हंसी पर पापा को गुस्सा आ गया। “अरे, आप सब बेवजह परेशान हो रहे हैं।” मम्मी फिर मुसकराकर बोलीं। “इसका मतलब, आप जानती हैं कि मेरे गमले कहां हैं?” पूछती हुई मीनू उनके पास आकर खड़ी हो गई। मम्मी की बातों ने उम्मीद जगा दी थी। “मेरी प्यारी बिटिया, तुम्हारे गमले किसी ने चोरी नहीं किए। दरअसल आज गोपू के स्कूल में पर्यावरण दिवस पर प्रदर्शनी लगी है, तो वही तुम्हारे गमले ले गया।” मम्मी ने हंसते-हंसते बताया, तो मीनू का चेहरा खुशी से चमक उठा। वह उनसे लिपट गई। “ऊपर वाले का शुक्र है, हम तो जाने क्या-क्या सोच रहे थे।” दादाजी बोले। “अगर तुम ही उसे बता देतीं, तो वह परेशान न होती।” पापा ने मम्मी से कहा। “मुझे लगा, गोपू ने इसे बताया होगा। आई एम सो सॉरी बेटी।” मम्मी ने कहते हुए उसे गोद में उठा लिया। मीनू का बुझा चेहरा ताजे फूल की तरह खिल उठा। उदासी पल भर में दूर हो गई। “अच्छा, चलो अब फटाफट तैयार हो जाओ। तुम्हारी स्कूल बस आती ही होगी।” मम्मी प्यार से बोलीं, तो वह खुशी-खुशी अपना बैग पैक करने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी।

 
 
 

गमले कहां गए ऐप पर पढ़ें घर के बाहर लॉन से गमले गायब थे। मीनू दौड़कर आसपास ढूंढ़ आई, लेकिन उसे कहीं कोई सुराग नहीं मिला। माथे पर सिकुड़न लिए हुए रोंआसी वह घर लौट आई। “क्या हुआ?” पापा ने उसका लटका हुआ चेहरा देखकर पूछा। मीनू कुछ न बोली, बस फफककर रो पड़ी। रोने की आवाज सुनकर दादाजी भी आंगन से कमरे की ओर दौड़ पड़े। उनके पूछने पर मीनू ने बताया, “मेरे सातों गमले लॉन से चोरी हो गए। जाने कौन ले गया उन्हें?” यह सुनकर सबको बड़ा ताज्जुब हुआ। “भला गमले चोरी करके किसी को क्या मिला होगा?” पापा सोच में पड़ गए। “किसी घटिया चोर का काम लगता है।” दादाजी बड़बड़ाए। उधर मीनू अपने प्यारे गमलों को याद करके लगातार रोए जा रही थी। पापा ने उसके सातवें जन्मदिन पर उपहार में सात छोटे गमले लाकर दिए थे। उनमें तरह-तरह के फूलों के पौधे लगे थे। उस दिन उसकी खुशी का ठिकाना न था। उसे ऐसा अनोखा उपहार आज तक न मिला था। कोई उसके गमलों को चुरा ले जाएगा, उसने सोचा भी न था। “गमले फिर आ जाएंगे बिटिया, तुम चिंता न करो।” उसे परेशान देखकर दादा बोले। “मैं आज ही नए गमले ला दूंगा।” पापा ने भरोसा दिलाया, लेकिन मीनू फिर भी सुबकती रही। उसे रह-रहकर गमलों की याद आ रही थी। मम्मी घर पर नहीं थीं। वह मीनू के छोटे भाई गोपू को स्कूल छोड़ने गई थीं और अभी तक आई नहीं थीं। मीनू को डर था कि मम्मी उस पर बहुत गुस्सा होंगी। उन्होंने मीनू को गमले बाहर न रखने का सुझाव दिया था। वह चाहती थीं कि गमले आंगन में रखे जाएं ताकि खुले घूम रहे जानवरों से बचे रहें, लेकिन मीनू नहीं मानी थी। “आंगन में पूरी तरह धूप भी तो नहीं आती है।” मीनू ने यह कहते हुए आंगन में गमले रखने से मना कर दिया था। ‘मैं मम्मी की बात मान जाती, तो मेरे गमले चोरी न होते।’ सोचकर मीनू पहले से ज्यादा उदास हो गई। “जो चीज चली गई, उसके लिए अब क्या रोना बेटी? शाम तक तुम्हारे नए गमले आ जाएंगे।” दादाजी ने उसे अपने पास बुलाकर गोद में बिठा लिया। थोड़ी देर में ही मम्मी वापस आ गईं। मीनू डर के मारे दादाजी की गोद में दुबक गई। एक जगह सभी को इकट्ठा और उदास देखकर मम्मी को शक हुआ, तो उन्होंने पूछा,“आप सबको क्या हुआ?” दादाजी ने सारी बातें उन्हें बताईं। एक पल के लिए मम्मी शांत हो गईं। उन्हें सारा माजरा समझते देर न लगी,लेकिन अगले ही पल उनकी हंसी छूट पड़ी। “मीनू कब से रोए जा रही है, और तुम हंस रही हो? तुम्हें पता है, मीनू को गमले कितने प्यारे थे।” उनकी हंसी पर पापा को गुस्सा आ गया। “अरे, आप सब बेवजह परेशान हो रहे हैं।” मम्मी फिर मुसकराकर बोलीं। “इसका मतलब, आप जानती हैं कि मेरे गमले कहां हैं?” पूछती हुई मीनू उनके पास आकर खड़ी हो गई। मम्मी की बातों ने उम्मीद जगा दी थी। “मेरी प्यारी बिटिया, तुम्हारे गमले किसी ने चोरी नहीं किए। दरअसल आज गोपू के स्कूल में पर्यावरण दिवस पर प्रदर्शनी लगी है, तो वही तुम्हारे गमले ले गया।” मम्मी ने हंसते-हंसते बताया, तो मीनू का चेहरा खुशी से चमक उठा। वह उनसे लिपट गई। “ऊपर वाले का शुक्र है, हम तो जाने क्या-क्या सोच रहे थे।” दादाजी बोले। “अगर तुम ही उसे बता देतीं, तो वह परेशान न होती।” पापा ने मम्मी से कहा। “मुझे लगा, गोपू ने इसे बताया होगा। आई एम सो सॉरी बेटी।” मम्मी ने कहते हुए उसे गोद में उठा लिया। मीनू का बुझा चेहरा ताजे फूल की तरह खिल उठा। उदासी पल भर में दूर हो गई। “अच्छा, चलो अब फटाफट तैयार हो जाओ। तुम्हारी स्कूल बस आती ही होगी।” मम्मी प्यार से बोलीं, तो वह खुशी-खुशी अपना बैग पैक करने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी।

एक शहर में बहुत ही ज्ञानी प्रतापी साधु महाराज आये हुए थे, बहुत से दीन दुखी, परेशान लोग उनके पास उनकी कृपा दृष्टि पाने हेतु आने लगे. ऐसा ही एक दीन दुखी, गरीब आदमी उनके पास आया और साधु महाराज से बोला ‘ महाराज में बहुत ही गरीब हूँ, मेरे ऊपर कर्जा भी है, मैं बहुत ही परेशान हूँ। मुझ पर कुछ उपकार करें’. साधु महाराज ने उसको एक चमकीला नीले रंग का पत्थर दिया, और कहा ‘कि यह कीमती पत्थर है, जाओ जितनी कीमत लगवा सको लगवा लो। वो आदमी वहां से चला गया और उसे बचने के इरादे से अपने जान पहचान वाले एक फल विक्रेता के पास गया और उस पत्थर को दिखाकर उसकी कीमत जाननी चाही। फल विक्रेता बोला ‘मुझे लगता है ये नीला शीशा है, महात्मा ने तुम्हें ऐसे ही दे दिया है, हाँ यह सुन्दर और चमकदार दिखता है, तुम मुझे दे दो, इसके मैं तुम्हें 1000 रुपए दे दूंगा। वो आदमी निराश होकर अपने एक अन्य जान पहचान वाले के पास गया जो की एक बर्तनों का व्यापारी था. उनसे उस व्यापारी को भी वो पत्थर दिखाया और उसे बचने के लिए उसकी कीमत जाननी चाही। बर्तनो का व्यापारी बोला ‘यह पत्थर कोई विशेष रत्न है में इसके तुम्हें 10,000 रुपए दे दूंगा. वह आदमी सोचने लगा की इसके कीमत और भी अधिक होगी और यह सोच वो वहां से चला आया. उस आदमी ने इस पत्थर को अब एक सुनार को दिखाया, सुनार ने उस पत्थर को ध्यान से देखा और बोला ये काफी कीमती है इसके मैं तुम्हें 1,00,000 रूपये दे दूंगा। वो आदमी अब समझ गया था कि यह बहुत अमुल्य है, उसने सोचा क्यों न मैं इसे हीरे के व्यापारी को दिखाऊं, यह सोच वो शहर के सबसे बड़े हीरे के व्यापारी के पास गया।उस हीरे के व्यापारी ने जब वो पत्थर देखा तो देखता रह गया, चौकने वाले भाव उसके चेहरे पर दिखने लगे. उसने उस पत्थर को माथे से लगाया और और पुछा तुम यह कहा से लाये हो. यह तो अमुल्य है. यदि मैं अपनी पूरी सम्पति बेच दूँ तो भी इसकी कीमत नहीं चुका सकता. कहानी से सीख | Learning From The Story हम अपने आप को कैसे आँकते हैं. क्या हम वो हैं जो राय दूसरे हमारे बारे में बनाते हैं. आपकी लाइफ अमूल्य है आपके जीवन का कोई मोल नहीं लगा सकता. आप वो कर सकते हैं जो आप अपने बारे में सोचते हैं. कभी भी दूसरों के नेगेटिव कमैंट्स से अपने आप को कम मत आकियें.

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