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नयन आज बहुत खुश था। होता भी क्यों ना? पूरे 2 महीने बाद आज वह अपने दादा के साथ चिड़ियाघर आया था। कोरोना की महामारी के बाद आज ही चिड़ियाघर को आम आदमियों के लिए खोला गया था। नयन ने दादाजी से कहा, तो वह उसे लेकर चिड़ियाघर पहुंच गए। लोग अभी डरे हुए थे, इसलिए वहां लोगों का नामोनिशान नहीं था। ऐसे में नयन को देखकर चिड़ियाघर के जानवर भी बहुत खुश थे। वहां नयन ने देखा एक पिंजरा खाली था। उसने दादा जी से पूछा तो वह बोले,” बेटे पिंजरा आने वाले समय के लिए खाली रखा गया है। वह दिन दूर नहीं जब इंसान को भी पिंजरे में रखा जाएगा, लेकिन उसको देखेगा कौन? यह सोचने वाली बात है क्योंकि इंसान अपने किए की सजा पाकर खत्म होने की तरफ जा रहा है।” नयन की समझ में बात नहीं आई, तो दादाजी ने समझाया, ” बेटे हम इंसानों ने इस दुनिया में अपने लिए सुख इकट्ठा करने के चक्कर में बाकी जीव जंतुओं को बहुत दुख दिया है। शायद इसी कारण कोरोना जैसी महामारी फैलती है।” चिड़ियाघर घूमकर नयन घर लौटा, तो उसके दिमाग में वही खाली पिंजरा और चिड़ियाघर के जंगली जानवर घूम रहे थे। रात हुई तो नयन सपने में भी जंगली जानवरों के बीच था परंतु इस बार चिड़ियाघर में नहीं, जंगल में। जंगल में वह अकेला घूम रहा था कि तभी एक हाथी उसकी ओर लपका। हाथी के डर से नयन भागने लगा, तो अचानक एक बड़े से गड्ढे में गिर पड़ा। उसकी चीख निकल गई। हाथी वहां तक पहुंचा। रोते हुए नयन को देखकर वह बोला, “बेटे, आज तुम्हें पता चल रहा होगा कि जब हमें पकड़ने के लिए तुम इंसान ऐसे गड्ढे खोदकर हमें उसमें गिरा देते हो, तो हमें कितनी तकलीफ होती होगी। पर तुम तो बच्चे हो, तुमसे मैं क्या बदला लूं। लो, मेरी सूँड पकड़ो, मैं तुम्हें बाहर निकाल देता हूं।” डरते-डरते, नयन ने हाथी की सूंड पकड़ ली। हाथी ने धीरे से उसे गड्ढे से बाहर निकाल दिया। जाते-जाते इतना ही बोला, ” कभी किसी को इतना मत सताओ कि वह तुम्हारा दुश्मन बन बैठे।” नयन की समझ में कुछ बात आई, कुछ नहीं आई। वह थोड़ा आगे बढ़ा तो एक तेंदुआ उसके पीछे पड़ गया। नयन को लगा कि वह आज जान से जाएगा। वह भागने लगा, तो सामने उसे एक पिंजरा पड़ा दिखाई दिया। जान बचाने के लिए नयन पिंजरे में घुस गया और दरवाजा बंद कर लिया। देखते देखते आसपास बहुत सारे जंगली जानवर और पक्षी इकट्ठे हो गए। पिंजरे में आदमी को देखकर सब बहुत खुश हो गए। एक चिड़िया बोली, “आज तो तुम्हें आटे दाल का भाव पता चल रहा होगा। सोचो, जब मैं पिंजरे में बंद रहती हूं और तुम सब बच्चे बाहर से मुझे देखते हो, तो कैसा लगता होगा ? तभी एक बंदर आया। वह खो-खो कर नयन को डराने लगा। फिर बोला, “तुम्हें तो मुझे आदमी की तरह कपड़े पहने देखना अच्छा लगता है। अब अपने कपड़े लाओ। मैं इन्हें पहनकर नाचूंगा और सब जानवरों को दिखाऊंगा” नयन ने डर के मारे अपने कपड़े उतारकर बंदर को दे दिए। सबके सामने अधनंगा खड़ा होकर नयन की आंखों में आंसू आ गए। वह हाथ जोड़कर बोला,”आज मुझे यहां से जाने दो। अब मैं तुम लोगों को कभी नहीं सताऊंगा। मैं समझ गया हूं कि स्वतंत्रता सबको प्रिय है और सब के साथ आदर से पेश आना चाहिए।” तभी साही ने कहा, “तुम इंसान इतनी जल्दी नहीं सुधर सकते। तुम्हें सुधारने के लिए तो पांच-दस साल में एक बार कोई झटका लगना चाहिए जैसे अभी कोरोना का झटका लगा है।” सारे जानवर उसकी तरफ देखने लगे तो उसने तोते की तरफ इशारा कर दिया। तोते ने कहा, “मैं पहले इसके जैसे एक बच्चे के घर में कैद था। कुछ दिनों पहले इनके शहर में एक बीमारी फैली थी जिसे सब कोरोना-कोरोना कह रहे थे। उसके डर से सारे इंसान अपने घर में कैद हो गए थे और मजबूरी में हम जानवरों को उन्होंने छोड़ दिया। मुझे तो लगता है हम सब जानवरों और पक्षियों को भगवान से प्रार्थना करना चाहिए कि इन इंसानों को इस तरह के झटके देते रहें, ताकि इनके अंदर इंसानियत किसी रूप में जाग जाए। अब तक चुप एक एक सांप बोला, “रहने दो, ये अपने को बहुत बड़ा समझते हैं। यह कभी नहीं सुधरेंगे। यह तो हम जानवरों से खुद को बहुत अच्छा समझते हैं। एक-आध को छोड़कर इनके अधिकतर मुहावरे भी हमें बुरा ही बताते हैं। अब देखो, यह खुद गलती करते हैं, खुद को धोखा देते हैं और कह देते हैं आस्तीन का सांप।” “हां-हां, तुम बिल्कुल ठीक चाहते हो। मैं सारा दिन काम करता हूं फिर भी मुझे इज्जत देने के बदले यह कहते हैं समय आने पर गधे को भी बाप बना लो।” “छोड़ो-छोड़ो। ऐसी बातें करते रहेंगे तो रात हो जाएगी और यह बच्चा यही भूखा-प्यासा रह जाएगा। इसे इसके घर छोड़ आते हैं।” एक जानवर ने सुझाव दिया। नयन के कपड़े उसे देते हुए बंदर ने कहा,” मैं शहर का रास्ता जानता हूं। मैं इसे शहर के बाहर तक छोड़ आऊंगा।” तभी हाथी आया और उसने कहा , “घबराओ मत, मैं तुम दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर बाहर तक छोड़ आता हूँ। हो सकता है कि हमारा प्यार देखकर इसके मन में भी पशु-पक्षियों के लिए प्यार जागे और यह मनुष्यों को समझा सके कि हम पशु पक्षी गुलाम नहीं है। उन्हें हमारे साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।” नयन अपने कपड़े पहनकर हाथी पर बैठा और सभी जंगली जानवरों से विदा लेकर घर की तरफ चल पड़ा। सुबह जब नयन की नींद खुली, तो सपने को याद कर हंस पड़ा। उसने मन ही मन वादा किया, “अब मैं सबको समझाऊँगा कि पशु-पक्षियों को तंग ना करके उनके साथ प्यार से पेश आना चाहिए


ऐप पर पढ़ें साहिल स्कूल से आते ही मम्मी का मोबाइल लेकर गेम खेलना शुरू कर देेता या सोशल साइट्स पर चैटिंग करने लगता। एक बार वह खेलने बैठता, तो घंटों तक खेलता ही रहता। उसे न होमवर्क की चिंता रहती और न ही खाने की। फुटबॉल खेलना, गिटार बजाना और मोबाइल पर गेम खेलना उसकी हॉबी थी। पर अब वह सब कुछ भूलकर सुबह से लेकर शाम तक बस मोबाइल पर ही खेलता रहता। मम्मी-पापा दोनों के मना करने के बावजूद साहिल नहीं मानता। अपनी इस आदत की वजह से वह पढ़ाई में भी पिछड़ता जा रहा था। फिजिकल एक्टिविटी न होने से उसका वजन भी लगातार बढ़ता जा रहा था। मम्मी चाहती थीं कि साहिल खेलने के साथ-साथ पढ़ाई और अपनी हेल्थ पर भी ध्यान दे। पर साहिल उनकी कोई बात मानने को तैयार ही नहीं था। मम्मी अब उसे समझाने के लिए कोई और तरीका सोच रही थीं। परीक्षा खत्म हो चुकी थी। इस बार छुट्टियों में मम्मी-पापा साहिल को लेकर गांव जाने की योजना बना रहे थे। दरअसल मम्मी चाहती थीं कि साहिल इस बार छुट्टियां दादाजी के साथ बिताए। उनके साथ गांव घूमे। उनसे अच्छी आदतें सीखे और जैसे वे फिट रहते हैं, वैसे ही साहिल भी रहे। छुट्टियों में साहिल भी मम्मी-पापा के साथ जाने को तैयार हो गया। उसने सोचा, ‘वहां जाकर तो मम्मी मुझे पढ़ाई के लिए टोकेंगी नहीं। मैं मजे से पूरा दिन मोबाइल पर खेलता रहंूगा। वाह! कितना मजा आएगा।’ मम्मी ने साहिल की मोबाइल पर खेलने की लत के बारे में दादाजी को पहले ही बता दिया था। उन्होंने भी साहिल को ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ से निकालकर वास्तविक दुनिया में लाने और पढ़ाई तथा सेहत की ओर ध्यान दिलाने की पूरी तैयारी कर रखी थी। छुट्टी होते ही साहिल मम्मी-पापा के साथ गांव पहंुचा। वहां पहुंचते ही दादाजी ने उसे गले लगा लिया। उसे अपने कमरे में ही रखा। सोते समय सुबह जल्दी उठकर अपने साथ सैर पर चलने को कहा। साहिल ने भी उनका मन रखने के लिए हां कह दिया। अगले दिन सुबह जब साहिल नहीं उठा, तो दादाजी ने स्वयं जाकर उसे उठाया। जैसे-तैसे वह उठा और तैयार होकर दादाजी के साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद घूमते-घूमते साहिल को भी मजा आने लगा। रास्ते में दादाजी ने उसे कई पंछी दिखाए और जब उनके नाम पूछे, तो साहिल बता नहीं पाया। दादाजी ने कहा, “बेटा, मैंने तो सुना है, तुम अपनी मम्मी का स्मार्ट फोन बहुत इस्तेमाल करते हो। क्या उस पर यह सब पता नहीं चलता?” दादाजी की बात सुनकर साहिल को शर्मिंदगी महसूस हुई। दरअसल वह दादाजी को नहीं बता पाया कि वह तो बस मोबाइल पर गेम खेलता है या दोस्तों से चैटिंग करता है। दादाजी ने रास्ते में साहिल को कई तरह के पेड़-पौधे, खेत-खलिहान और अपने गांव की नदी भी दिखाई। हालांकि नदी में पानी ज्यादा नहीं था। साहिल को सुबह का यह नजारा बहुत अच्छा लगा। घर लौटते ही साहिल तो बिस्तर पर लेट गया और दादाजी ने आंगन में कसरत शुरू कर दी। उन्हें देखकर साहिल की आंखें खुली की खुली रह गईं। कुछ देर बाद साहिल की मम्मी उसके लिए नाश्ता ले आईं, तब जाकर साहिल को राहत मिली। दो दिन बाद साहिल के ममेरे भाई अमित का जन्मदिन था। दादाजी ने आसपास के सभी बच्चों को घर बुला लिया था। पार्टी के लिए दादाजी ने पूरा इंतजाम कर रखा था। बच्चों को घर आया देख साहिल भी कमरे से बाहर आ गया और उनके साथ खेलने लगा। सब बच्चों ने खूब मस्ती की। साहिल को उनके साथ बहुत मजा आ रहा था। इस तरह की मस्ती उसने बहुत समय बाद की थी। पार्टी के बाद सब बच्चे अपने-अपने घर जाने लगे, तोे दादाजी ने सबको अगले दिन शाम को फिर आने को कहा। दरअसल अगले दिन दादाजी ने बच्चों के लिए ‘वन मिनिट गेम’ और ‘कविता प्रतियोगिता’ रखी थी, जिसमें विजेता को पुरस्कार भी मिलने वाला था। प्रतियोगिता का निर्णय करने के लिए दादाजी ने अपने कुछ दोस्तों को भी बुलाया था। शाम को जब बच्चे घर पर इकट्ठे हो गए, तो साहिल ने केवल ‘वन मिनिट गेम’ में हिस्सा लिया। वह सोचने लगा, ‘जब मैं तीसरी कक्षा में था, तो स्कूल में हर बार कविता प्रतियोगिता में भाग लेता था। कभी मैं खुद अपनी लिखी कविता सुनाता था, तो कभी मम्मी मुझे प्रतियोगिता की तैयारी करवाती थीं। कई बार तो मुझे पहला पुरस्कार भी मिला। पर अब अपने घर में कविता प्रतियोगिता है, तो मैं भाग नहीं ले पा रहा हूं।’ साहिल की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सी कविता सुनाए। जब बाकी बच्चे अपनी कविता सुना रहे थे, तब साहिल सोच रहा था, ‘जब से मैंने मोबाइल पर गेम खेलना शुरू किया है तब से ही मैंने पढ़ाई और स्कूल की एक्टिविटी पर ध्यान देना बंद कर दिया है। और तो और, अब मैं घर आकर मम्मी को बताता तक नहीं हंू कि स्कूल में कब क्या चल रहा है।’ अब साहिल ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह मोबाइल पर इतनी ज्यादा देर तक नहीं खेलेगा। कविता प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद दादाजी ने तीन विजेताओं को ईनाम दिया। फिर सबने खूब डांस किया और खाना खाने के बाद अपने-अपने घर लौट गए। कुछ दिनों बाद साहिल भी मम्मी-पापा के साथ शहर वापस आ गया। गांव से आने के बाद साहिल बदल चुका था। अब वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सेहत पर भी ध्यान देने लगा था। वह रोज होमवर्क करने के बाद पार्क में घूमने जाने लगा। एक हफ्ते बाद जब मम्मी दादाजी से फोन पर बात कर रही थीं तो उसने सुना कि मम्मी कह रही हैं, “थैंक्स पापाजी! आपका प्लान काम कर गया।” साहिल को गांव जाने और दादाजी की पूरी योजना को समझने में देर नहीं लगी। वह कमरे से बाहर आया और मम्मी के गले लग गया। फिर बोला, “आप दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हो। मुझे फिर से पहले जैसा साहिल बनाने के लिए थैंक्स मम्मी।

 
 
 

वर्चुअल दुनिया से बाहर ऐप पर पढ़ें साहिल स्कूल से आते ही मम्मी का मोबाइल लेकर गेम खेलना शुरू कर देेता या सोशल साइट्स पर चैटिंग करने लगता। एक बार वह खेलने बैठता, तो घंटों तक खेलता ही रहता। उसे न होमवर्क की चिंता रहती और न ही खाने की। फुटबॉल खेलना, गिटार बजाना और मोबाइल पर गेम खेलना उसकी हॉबी थी। पर अब वह सब कुछ भूलकर सुबह से लेकर शाम तक बस मोबाइल पर ही खेलता रहता। मम्मी-पापा दोनों के मना करने के बावजूद साहिल नहीं मानता। अपनी इस आदत की वजह से वह पढ़ाई में भी पिछड़ता जा रहा था। फिजिकल एक्टिविटी न होने से उसका वजन भी लगातार बढ़ता जा रहा था। मम्मी चाहती थीं कि साहिल खेलने के साथ-साथ पढ़ाई और अपनी हेल्थ पर भी ध्यान दे। पर साहिल उनकी कोई बात मानने को तैयार ही नहीं था। मम्मी अब उसे समझाने के लिए कोई और तरीका सोच रही थीं। परीक्षा खत्म हो चुकी थी। इस बार छुट्टियों में मम्मी-पापा साहिल को लेकर गांव जाने की योजना बना रहे थे। दरअसल मम्मी चाहती थीं कि साहिल इस बार छुट्टियां दादाजी के साथ बिताए। उनके साथ गांव घूमे। उनसे अच्छी आदतें सीखे और जैसे वे फिट रहते हैं, वैसे ही साहिल भी रहे। छुट्टियों में साहिल भी मम्मी-पापा के साथ जाने को तैयार हो गया। उसने सोचा, ‘वहां जाकर तो मम्मी मुझे पढ़ाई के लिए टोकेंगी नहीं। मैं मजे से पूरा दिन मोबाइल पर खेलता रहंूगा। वाह! कितना मजा आएगा।’ मम्मी ने साहिल की मोबाइल पर खेलने की लत के बारे में दादाजी को पहले ही बता दिया था। उन्होंने भी साहिल को ‘वर्चुअल वर्ल्ड’ से निकालकर वास्तविक दुनिया में लाने और पढ़ाई तथा सेहत की ओर ध्यान दिलाने की पूरी तैयारी कर रखी थी। छुट्टी होते ही साहिल मम्मी-पापा के साथ गांव पहंुचा। वहां पहुंचते ही दादाजी ने उसे गले लगा लिया। उसे अपने कमरे में ही रखा। सोते समय सुबह जल्दी उठकर अपने साथ सैर पर चलने को कहा। साहिल ने भी उनका मन रखने के लिए हां कह दिया। अगले दिन सुबह जब साहिल नहीं उठा, तो दादाजी ने स्वयं जाकर उसे उठाया। जैसे-तैसे वह उठा और  तैयार होकर दादाजी के साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद घूमते-घूमते साहिल को भी मजा आने लगा। रास्ते में दादाजी ने उसे कई पंछी दिखाए और जब उनके नाम पूछे, तो साहिल बता नहीं पाया। दादाजी ने कहा, “बेटा, मैंने तो सुना है, तुम अपनी मम्मी का स्मार्ट फोन बहुत इस्तेमाल करते हो। क्या उस पर यह सब पता नहीं चलता?” दादाजी की बात सुनकर साहिल को शर्मिंदगी महसूस हुई। दरअसल वह दादाजी को नहीं बता पाया कि वह तो बस मोबाइल पर गेम खेलता है या दोस्तों से चैटिंग करता है। दादाजी ने रास्ते में साहिल को कई तरह के पेड़-पौधे, खेत-खलिहान और अपने गांव की नदी भी दिखाई। हालांकि नदी में पानी ज्यादा नहीं था। साहिल को सुबह का यह नजारा बहुत अच्छा लगा। घर लौटते ही साहिल तो बिस्तर पर लेट गया और दादाजी ने आंगन में कसरत शुरू कर दी। उन्हें देखकर साहिल की आंखें खुली की खुली रह गईं। कुछ देर बाद साहिल की मम्मी उसके लिए नाश्ता ले आईं, तब जाकर साहिल को राहत मिली। दो दिन बाद साहिल के ममेरे भाई अमित का जन्मदिन था। दादाजी ने आसपास के सभी बच्चों को घर बुला लिया था। पार्टी के लिए दादाजी ने पूरा इंतजाम कर रखा था। बच्चों को घर आया देख साहिल भी कमरे से बाहर आ गया और उनके साथ खेलने लगा। सब बच्चों ने खूब मस्ती की। साहिल को उनके साथ बहुत मजा आ रहा था। इस तरह की मस्ती उसने बहुत समय बाद की थी। पार्टी के बाद सब बच्चे अपने-अपने घर जाने लगे, तोे दादाजी ने सबको अगले दिन शाम को फिर आने को कहा। दरअसल अगले दिन दादाजी ने बच्चों के लिए ‘वन मिनिट गेम’ और ‘कविता प्रतियोगिता’ रखी थी, जिसमें विजेता को पुरस्कार भी मिलने वाला था। प्रतियोगिता का निर्णय करने के लिए दादाजी ने अपने कुछ दोस्तों को भी बुलाया था। शाम को जब बच्चे घर पर इकट्ठे हो गए, तो साहिल ने केवल ‘वन मिनिट गेम’ में हिस्सा लिया। वह सोचने लगा, ‘जब मैं तीसरी कक्षा में था, तो स्कूल में हर बार कविता प्रतियोगिता में भाग लेता था। कभी मैं खुद अपनी लिखी कविता सुनाता था, तो कभी मम्मी मुझे प्रतियोगिता की तैयारी करवाती थीं। कई बार तो मुझे पहला पुरस्कार भी मिला। पर अब अपने घर में कविता प्रतियोगिता है, तो मैं भाग नहीं ले पा रहा हूं।’ साहिल की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सी कविता सुनाए। जब बाकी बच्चे अपनी कविता सुना रहे थे, तब साहिल सोच रहा था, ‘जब से मैंने मोबाइल पर गेम खेलना शुरू किया है तब से ही मैंने पढ़ाई और स्कूल की एक्टिविटी पर ध्यान देना बंद कर दिया है। और तो और, अब मैं घर आकर मम्मी को बताता तक नहीं हंू कि स्कूल में कब क्या चल रहा है।’ अब साहिल ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह मोबाइल पर इतनी ज्यादा देर तक नहीं खेलेगा। कविता प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद दादाजी ने तीन विजेताओं को ईनाम दिया। फिर सबने खूब डांस किया और खाना खाने के बाद अपने-अपने घर लौट गए। कुछ दिनों बाद साहिल भी मम्मी-पापा के साथ शहर वापस आ गया। गांव से आने के बाद साहिल बदल चुका था। अब वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सेहत पर भी ध्यान देने लगा था। वह रोज होमवर्क करने के बाद पार्क में घूमने जाने लगा। एक हफ्ते बाद जब मम्मी दादाजी से फोन पर बात कर रही थीं तो उसने सुना कि मम्मी कह रही हैं, “थैंक्स पापाजी! आपका प्लान काम कर गया।” साहिल को गांव जाने और दादाजी की पूरी योजना को समझने में देर नहीं लगी। वह कमरे से बाहर आया और मम्मी के गले लग गया। फिर बोला, “आप दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी हो। मुझे फिर से पहले जैसा साहिल बनाने के लिए थैंक्स मम्मी।

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