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कहानी वाशिंग मशीन की

“मम्मी, अब मैं कैसे स्कूल जाऊं, मेरी तो ड्रेस ही साफ नहीं है।” कहते हुए शालू की आंखें शरारत से चमक उठीं। आज क्लास टेस्ट था और वह उसे मिस करना चाहती थी। “कोई बात नहीं, तुम फ्रेस हो लो। मैं ड्रैस देखती हूं।”  कहते हुए मम्मी मुसकरा उठीं।   शालू तो बाथरूम में घुस गई, पर बीस मिनट बाद वह नहाकर बाहर आई, तो मम्मी के हाथों में चमचमाती स्कूल ड्रैस देखकर चकित रह गई। फिर उसकी निगाह कोने में रखी वाशिंग मशीन पर गई।  “पता नहीं किस बदमाश ने वाशिंग मशीन बनाई? वह बच्चों को बिल्कुल प्यार नहीं करता होगा।” भुनभुनाते हुए शालू तैयार होने लगी। “बेटी तुम्हें मालूम नहीं। वाशिंग मशीन के आविष्कार की कहानी भी बड़ी मजेदार है। सबसे पहले कपड़े धोने के लिए मशीन बनने का उल्लेख 1691 में मिलता है। इंग्लैंड में किसी ने अपनी मशीन को पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया था। पर 1782 में पहली बार हेनरी सिडजियर को घूमने वाले ड्रम वाशर का पेटेंट दिया गया था। 1797 में ही पहली बार अमेरिका में नथानिएल ब्रिग्स को एक पेटेंट मिला, जिसका नाम था ‘कलोद्स वाशिंग’।   1906 में पहली बार बिजली से चलने वाली वाशिंग मशीन का आविष्कार हुआ। पर इसे बनाया किसने, कोई नहीं जानता। हां इसका पेटेंट ए. जे. फिशर के नाम कर दिया गया, जो बाद में गलत सिद्ध हुआ। अमेरिकी पेटेंट ऑफिस के रिकार्ड से पता चलता है कि फिशर से पहले कोई व्यक्ति वाशिंग मशीन के पेटेंट के लिए आवेदन कर चुका था।  पर जिसको भी इसका श्रेय मिले, एक औरत  होने के नाते मैं कह सकती हूं कि औरतों की मदद के लिए बनी यह सबसे बढि़या चीज है।” “वह कैसे?”- शालू ने जिज्ञासा से पूछा। “बेटी, एक वक्त था, औरत का सबसे ज्यादा समय खाना बनाने और कपड़े धोने में बर्बाद होता था। कपड़े घर पर न धुलकर नदी-तालाबों में धोए जाते थे।” इसके लिए पता नहीं औरतें कितनी दूर तक जातीं और आती थीं। पहाड़ी गांवों में तो हर साल सैकड़ों औरतें नदी तक जाने और आने में अपनी जान गवां बैठती थीं। फिर कपड़ों को हाथ से रगड़कर धोना। साबुन में कास्टिक ज्यादा हो, तो हाथ तक कट जाते थे। फिर उन कपड़ों को सुखाना और घर तक लाना, किसी यातना से कम नहीं लगता था। पर जब से वाशिंग मशीन का आविष्कार हुआ है, यह सब कितना आसान हो गया है। इधर कपड़े डालो और आधे घंटे में उन्हें धोना शुरू कर दो। ऑटोमैटिक मशीन में तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती।  बस पानी में डिटरजेंट के साथ कपड़े डालो और तय समय में कपड़े धुलकर और सूखकर बाहर आ जाते हैं। और हाल ही में ऐसी वाशिंग मशीन भी बन चुकी है, जो कपड़े धोने वाले को बताती चलती है कि अब आगे क्या करना है। कपड़े धोने में कम समय लगने से हम औरतों का बहुत समय बचता है, जो हम घर में अपने बच्चों पर खर्च करते हैं।” कहते हुए शालू की मम्मी ने उसे अपने से चिपटा लिया।  सालू भी मां का प्यार पाकर मुसकरा उठी और जल्दी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होने लगी

बिल्ली की खिल्ली

इक बिल्ली की उड़ गई खिल्ली कैसे जी, कैसे जी? सुनो ध्यान से घटी ये घटना ऐसे जी, ऐसे जी।

इक दिन बिल्ली ने सोचा देख के आऊं मैं पिक्चर, बिना टिकट के छुपते-छुपते पहुंची सिनेमा के अंदर।

सिनेमा हॉल के परदे पर दूध मलाई आई नजर, झपट पड़ी वह परदे पर परदा फट गया फर-फर-फर

किले की चाबी

माधो जंगल में लकड़ियां बीन रहा था। अचानक अपने गांव से आग की लपटें उठती देखकर वह घबरा उठा। पड़ोसी राजा को अपने किले में काम कराने के लिए गुलामों की आवश्यकता थी। उस समय उसके सैनिक ही गांव वालों को गुलाम बनाकर ले जा रहे थे। माधो जान बचाने के लिए घने जंगल में भाग गया। दिन बीतने पर माधो गांव लौटा, लेकिन वहां कोई नहीं था। उसके माता-पिता को भी  निर्दयी सैनिक पकड़कर ले गए थे। माधो क्रोध से उबल पड़ा। वह राजा के किले की ओर चल दिया। वह किसी तरह गांव वालों को छुड़ाना चाहता था। किसी तरह छिपता हुआ माधो किले के अंदर पहुंचगया। गांव वालों के साथ उसके माता-पिता तपती धूप में राजा के खेतों में काम कर रहे थे। पानी मांगने पर सिपाही उन पर कोड़े बरसाते थे। तभी पास खड़ी एक गरीब बुढि़या ने माधो से पूछा, “तुम्हें क्या कष्ट है बेटा? मैं राजा की मालिन हूं।” माधो ने उसे सारी बात बताई। मालिन भी राजा की क्रूरता से बहुत दुखी थी। वह माधो को अपने घर ले गई। उसे माला गूथना सिखा दिया। फिर एक दिन उसे राजा से भी मिलवाया। राजा माधो की बनाई माला देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह माधो को महल दिखाने लगा। माधो ने पूछा, “महाराज, कोई शत्रु आपके महल में घुस आए तो?” राजा उसे दीवार में लगी एक मुठिया दिखाकर बोला, “अगर ऐसा हुआ, तो हम यह मुठिया घुमा देंगे। किले के सारे पानी में बेहोशी की दवा घुल जाएगी। पानी पीने वाले बेहोश हो जाएंगे। थके-मांदे शत्रु के सैनिक आते ही पानी तो पिएंगे ही।” फिर राजा ने माधो को एक बड़ी सी चाबी दिखाई और बोला, “यह चाबी देखो, इससे हम किले का दरवाजा बंद कर देंगे। होश में आने पर फिर कोई बाहर नहीं निकल सकता।” मालिन ने माधो को नागगंध की एक माला बनाकर दी। उसे पहनते ही राजा और रानी गहरी नींद में सो गए। माधो ने जल्दी ही वह मुठिया घुमा दी। फिर राजा की जेब से किले की चाबी निकालकर महल से बाहर आ गया। पानी पीते ही राजा के सैनिक बेहोश होकर गिरने लगे। गांव वाले पानी पीने दौड़े, तो माधो ने उन्हें पानी नहीं पीने दिया और फौरन किले से बाहर निकल जाने के लिए कहा। सब बाहर आ गए, तो माधो ने चाबी से फाटक को बंद कर दिया। निर्दयी राजा अपने सिपाहियों के साथ अपने ही किले में बंद हो गया। गांव वाले उसके अत्याचार से मुक्त हो गए थे।

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